रीवा राजघराने के गुरु लक्ष्मण पीठाधीश्वर राजगुरु स्वामी महाराज का हुआ निधन, पार्थिव शरीर देरशाम लाया गया रीवा

रीवा. रीवा राजघराने के गुरु लक्ष्मण पीठाधीश्वर राजगुरु स्वामी महाराज का हुआ निधन, लक्ष्मणबाग संस्थान रीवा के पीठाधीश्वर हरिवशाचार्य (91) का बुधवार को निधन हो गया। कुछ दिन पहले ही उन्हें उपचार के लिए नागपुर ले जाया गया था। बुधवार देर शाम पार्थिव शरीर रीवा लाया गया। गुरुवार को अंतिम संस्कार होगा। निधन की खबर मिलते ही बड़ी संख्या में उनके अनुयायी पहुंच गए। महंत हरिवंशाचार्य रीवा राजघराने के राजगुरु व कई विषयों के जानकार थे। इलाहाबाद विवि से एलएलएम के बाद जज बनने का प्रस्ताव भी आया, लेकिन नहीं गए। लक्ष्मणबाग संस्थान का आध्यात्मिक क्षेत्र में बड़ा वैभव रहा है। यह रामानुज संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था। यहां के महंत को जगद्गुरु की उपाधि मिलती है। लक्ष्मणबाग संस्थान के मुखिया महंत ही होते हैं, लेकिन कुछ वर्ष पहले कलेक्टर को प्रशासक बना दिया गया था। तब से कलेक्टर के प्रतिनिधि के रूप में हुजूर एसडीएम इसके प्रशासक है। 

nn

1983 में बने राजगुरुः इतिहासकार असद खान ने बताया, हरिवंशाचार्य गोविंदगढ़ के त्रिदंडी मठ में रहते थे। राजगुरु राघवाचार्य के निधन के बाद महाराजा मार्तंड सिंह ने 1983 में राजगुरु की उपाधि दी थी।

nn

यूपी के जौनपुर में जन्म

nn

हरिवंशाचार्य का जन्म 1932 में यूपी के जौनपुर में हुआ था। राजगुरु बद्री प्रपन्नाचार्य के परिवार से जुड़े होने के साथ उनके शिष्य भी रहे। 4 जुलाई 1957 को महंत बनाए जाने की वसीयत लिखी गई थी। बाद में विवाद शुरू हुआ तो हरिवंशाचार्य ने पद छोड़ त्रिदंडी मठ में रहने लगे। बाद में फिर से गद्दी पर बैठाया।

nn

रामानुज संप्रदाय का केंद्र रहा है लक्ष्मणबाग

nn

लक्ष्मणबाग संस्थान व हरिवंशाचार्य से जुड़े सुरेंद्र माला ने बताया कि 1805 में रीवा के तत्कालीन महाराजा ने लक्ष्मणबाग में रामानुज संप्रदाय की गद्दी स्थापित की थी। रीवा क्षेत्र को श्रीराम के अनुज लक्ष्मण का राजकीय क्षेत्र माना जाता है। यहां रामानुज संप्रदाय के पहले पीठाधीश्वर स्वामी मुकुंदाचार्य बनाए गए थे। इसके बाद से देश के विभिन्न हिस्सों में विस्तार हुआ।

nn

लक्ष्मणबाग परिसर में होगा अंतिम संस्कार

nn

लक्ष्मणबाग संस्थान के प्रशासक अनुराग तिवारी ने बताया, पार्थिव शरीर लक्ष्मणबाग परिसर में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। परिसर में ही अंतिम संस्कार होगा। अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान से कराने संबंधी प्रोटोकाल जारी नहीं हुआ। 2005 से व्यवस्था समाप्त है।

Leave a Comment