Rewa Airport: रीवा एयरपोर्ट का नामकरण प्रथम सांसद राजभान सिंह तिवारी के नाम किये जाने की माग लेकर गुरुवार को कमिश्ररी में ज्ञापन सौंपा, जानिए पूरा मामला...

सतना न्यूज मीडिया | रीवा एयरपोर्ट का नाम प्रथम सांसद राजभान सिंह तिवारी के नाम पर करने की मांग को लेकर गुरुवार को कमिश्नरेट को ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन में बताया गया कि रीवा के प्रथम सांसद एवं स्वतंत्रता सेनानी स्व राजभान सिंह तिवारी को किया जाए। सरपंच महासंघ व अंतरराष्ट्रीय अधिवक्ता दिवस संघर्ष परिषद के अध्यक्ष राजकुमार सिंह तिवारी, वरिष्ठ अधिवक्ता घनश्याम सिंह व आप के संभागीय अमित सिंह शामिल थे. सभी ने कहा कि वे एक स्वतंत्र और वैभवशाली भारत के निर्माण में आत्मनिर्भर थे। राजभान सिंह का योगदान उल्लेखनीय रहा है। इसलिए ऐसे अमर योद्धा के नाम पर रीवा एयरपोर्ट का नाम रखने पर जिले के निवासियों को गर्व होगा। नरेश सिंह तिवारी, प्रियन सिंह तिवारी, रामरतन नीरज, शत्रुघ्न, ध्रुव मनीष सिंह तिवारी, भागीरथी, दिलीप, सिद्धेश्वर सिंह, मानसी तिवारी, कीर्ति सिंह प्रियंका कुशवाहा, पूजा शुक्ला, अन्नपूर्णा त्रिपाठी, प्रिया सिंह, गायत्री साहू, सरोज सम्राट आदि का ज्ञापन उपस्थित रहें।
विशेष व्याख्यान का आयोजन:
शासकीय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय में गुरुवार को विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का आयोजन कॉलेज के समाजशास्त्र विभाग द्वारा इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसायटी के सहयोग से किया गया था। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. अरविंद जोशी थे. इस अवसर पर डॉ. जोशी ने भारतीय परिवार और वैश्वीकरण के बदलते परिदृश्य और उभरती चुनौतियों पर बात की। डॉ. जोशी ने कहा कि समाजशास्त्र समाज को समझने का विज्ञान है। उन्होंने कहा कि समाजशास्त्र सभी के लिए महत्वपूर्ण है। औद्योगीकरण की प्रक्रिया के बाद, भारतीय परिप्रेक्ष्य में परिवर्तन परिवार, विवाह और रिश्तेदारी की संस्थाओं में परिलक्षित हुआ। उन्होंने कहा कि समाज की मूल संस्था परिवार है। आज आवश्यकता है परिवार और समाज के बीच समन्वय स्थापित करने की। उन्होंने आश्रम व्यवस्था की व्याख्या करते हुए कहा कि गृहस्थ आश्रम महत्वपूर्ण है। क्योंकि समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से ही प्रारंभ होती है। भारतीय दर्शन और विज्ञान आदि काल से ही महत्वपूर्ण रहे हैं। विज्ञान और भारतीय दर्शन का आधार अलग है। जब हम अपनी मूल सत्ताओं की तुलना परिचय से करने लगते हैं तो हमारी दिशा गलत हो जाती है।
उन्होंने परिवार, विवाह और रिश्तेदारी के सामने आने वाली चुनौतियों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। डॉ. जोशी ने कहा कि आज हम बड़ों से दूर होते जा रहे हैं जबकि बुजुर्ग हमारी संस्कृति के संवाहक हैं। वृद्धावस्था में सम्मान से जीना वृद्धों का अधिकार है। आज परिवार का माहौल बदल रहा है। वर्तमान समय में माता-पिता द्वारा बच्चों की प्राथमिकता को नहीं छोड़ा जा रहा है, क्योंकि उपभोक्तावादी संस्कृति हावी हो रही है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी ज्ञान परंपरा को जीवंत बनाना होगा, तभी हम बनावटी जीवन शैली से बच सकते हैं। हमें कृत्रिम जीवन से बचना होगा और भारतीय परंपरा और मूल्यों में जीना होगा, तभी हमारी भारतीय संरचना की पहचान बनी रहेगी। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. महेश शुक्ला ने व्याख्यान के उद्देश्यों की जानकारी दी। इस दौरान प्राचार्या डॉ. अर्पिता अवस्थी, डॉ. अखिलेश शुक्ला, डॉ. शाहेदा सिद्दीकी, डॉ. रचना श्रीवास्तव, डॉ. अनिल सिंह, डॉ. अजयशंकर पांडेय, डॉ. सुशील द्विवेदी, डॉ. कुमद, डॉ. संजय शंकर मिश्रा, डॉ. संध्या शुक्ला, डॉ. शशि त्रिपाठी, डॉ. मनीष शुक्ला, डॉ. एस.पी. शुक्ला, डॉ. मधुलिका श्रीवास्तव, पुष्पराज सिंह, डॉ. सतीश द्विवेदी, डॉ. समयलाल प्रजापति, डॉ. अब्बास, डॉ. मोहम्मद परवेज, डॉ. सुरेंद्र यादव, डॉ. प्रियंका पांडेय, डॉ. निशा सिंह, डॉ. गुजन सिंह, डॉ. शिव बिहारी कुशवाहा, डॉ. प्रियंका तिवारी सहित अन्य शिक्षक व छात्र-छात्राएं मौजूद रहे.